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जीवन परिचय: रचनाकार सुश्री वंदना गर्ग जी का जन्म राजस्थान के धौलपुर जिले में १०अगस्त १९७५ ई.को हुआ। इनके पिता का नाम श्री हरि नारायण गर्ग व माता का नाम श्री मती रत्ना गर्ग है। इनका जीवन परेशानियों से घिरा रहा तथा इनकी प्रारंभिक से विश्वविद्यालय तक की संपूर्ण शिक्षा राजस्थान से ही ग्रहण की। कला वर्ग में समाजशास्त्र व हिन्दी से इन्होंने स्नातकोत्तर व बी.एड.की उपाधि प्राप्त की। इनकी रचनाओं में यथार्थता व मार्मिकता के दर्शन होते हैं।
मौलिकता का प्रमाणपत्र: मैं वंदना गर्ग स्वप्रमाणित करती हूँ कि भेजी गई रचनाएँ नितांत मौलिक हैं, तथा मैं हिंदी साहित्य सेवा मंच (www.hindisahityaseva.com) को इन्हे प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान करती हूँ, रचनाओं के प्रकाशन से यदि कॉपीराइट का कोई उल्लंघन होता है तो उसकी पूरी ज़िम्मेदारी मेरी होगी।
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“जी चाहता है“
तेरे प्यार से है आज मेरी दुनिया जवाँ।
तेरे प्यार में खुद को भुलाने को जी चाहता है।।
तेरे कदमों में हैं ज़िन्दगी के दो जहाँ मेरे।
तेरे कदमों में जन्नत बसाने को जी चाहता है।।
तेरे हाथों में है ज़िन्दगी या मौत मेरी।
तुझपे सब कुछ लुटाने को जी चाहता है।।
तेरे चेहरे पर ये दो मदहोश आँखें।
इन आँखों में समां जाने को जी चाहता है।।
तेरे दम से है मेरी जान ऐ मेरी जान-ए- ग़ज़ल।
आज ये नज़्म सुनाने को जी चाहता है।।
तेरे रुखसार पर देख कर “सनम” नूर ख़ुदा का।
तेरे सज़दे में सर अपना झुकाने को जी चाहता है।।
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“दोष देंगे”
दर्दे दिल न दिखाना किसी को, लोग तुम्हें ही दोष देंगे।
कोई बात न बताना किसी को, लोग तुम्हें ही दोष देंगे।।
ग़र कोई बात है ग़म की,आँखें नम न करना।
जो अश्क छलक गये।
लोग तुम्हें ही दोष देंगें।।
हर दर्द को सीने में छुपाना ही है बेहतर ।
किसी को दिल जो दिखाया, लोग तुम्हें ही दोष देंगें।।
ज़हर के हर पैमाने को हँसकर पीना”सनम”।
जो तुमने ‘आह’ निकाली, लोग तुम्हें ही दोष देंगें।।
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“कारवाँ”
हर मुश्किलों से मैं यूँ गुज़रता ही गया,
मंज़िलें आती गई और मैं चलता ही गया।
चाँद नहीं था लोगों को ठोकर से बचाने के लिए,
अमावस की रात में राहभर जलता ही गया।
ज़िन्दगी किसी काम न आईअफ़सोस है ज़माने के लिए,
ये रोग मेरे दिल में दिन -ब-दिन पलता ही गया।
तन्हां चला था घर से “सनम” ग़म को दिल में छुपाकर,
लोग आकर मिलते गये कारवाँ बनता ही गया।।
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“रस्म”
हमने है हर रस्म निबाही दुनिया को निबाहने के लिए।
ये दिल हमने दिया था उनको गिरने से बचाने के लिए।।
क्या खबर थी होंगे मेरे वही कातिल हमदम।
जो मसीहा थे कभी ज़माने के लिए।।
आई रास न दुनिया न रास आए वो मुझे।
आज सजे हैं ऐसे जनाज़े पे जाने के लिए।।
आखिरी सांस पे “सनम”बस तेरा ही नाम था।
वो आए तो हैं मजबूरी में पर हमें जलाने के लिए।।