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जीवन परिचय: डॉ. कुलराज व्यास का जन्म राजस्थान के धौलपुर जिले के बीलौनी गांव में २५ मई, १९८१ ई. को हुआ । इनके पिता का नाम श्री गोपाल प्रसाद व्यास एवं माता का नाम श्रीमती भगवान देवी है | इनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही पूर्ण हुई, जिसके बाद उच्च माध्यमिक स्तर की शिक्षा पास के कस्बे सरमथुरा से प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए यह धौलपुर चले गए जहां से उन्होंने इतिहास विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और बाद में जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से बी.एड.और एम.एड. की उपाधि प्राप्त की , तद्उपरांत कोटा विश्वविद्यालय कोटा, राजस्थान से इन्होंने इतिहास विषय में पीएचडी (डॉक्टर ऑफ़ फिलॉसफी) की उपाधि प्राप्त की। इनके कई शोध -पत्र विभिन्न शोध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । इन्होंने ब्रजेश महिला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के रूप में 6 वर्ष अपनी सेवाएं दी हैं। इन्हें स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एस. डी. एम. सरमरथुरा द्वारा गणतंत्र दिवस (२०१९) पर प्रशस्ति-पत्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया जा चुका है । वर्तमान में असिस्टेंट प्रोफेसर (आई.ए.एस.ई.मानित विश्वविद्यालय,सरदारशहर) के पद पर कार्यरत हैं | यह हर विषय पर और हर विधा में अपनी लेखन शैली से लेखन कार्य कर रहे हैं ।| उनकी रचनाओं में कई ऐतिहासिक तथ्यों की झलक मिलती है | कुलराज व्यास जी धौलपुर राजस्थान रह रहे हैं |
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मैं कोरोना वायरस बोल रहा हूँ
मैं सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी कोरोना वायरस बोल रहा हूँ।
हे मनुज!
लातिनी भाषा में मेरा(कोरोना) अर्थ “मुकुट” होता है ।मेरा जन्म चीन के वुहान शहर में हुआ है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन
(डब्ल्यू.एच.ओ. ) ने मेरा नाम कोविड -19 (Covid-19)रखा है जो बहुत लोकप्रिय हुआ है ।मुझे किसी भी नाम से पुकारो अच्छा लगता है ,खैर नाम में रखा ही क्या है ।कुछ नासमझ ,नादान मनुष्य मुझे कीड़ा कह कर भी पुकारते हैं ।मुझे इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता ।आगे मैं अपनी बात कहूँ कि मुझ में और ईश्वर में कुछ विशेष अंतर नहीं है मैं भी ईश्वर की तरह सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी हूँ।मैं कितने भी ताकतवर मनुष्य को कुछ ही समय में अपनी शक्ति का एहसास करा देता हूँ।मैं कण-कण में व्याप्त हूँ, मैं धूल में भी हूँ और फूल में भी हूँ । मैं सजीव में भी हूँ और निर्जीव में भी हूँ। मैं दृश्य भी हूँ और अदृश्य भी हूँ। मैं चेतन अर्ध-चेतन और अचेतन में भी हूँ। ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करने वाले या ना करने वाले सभी ने मेरी सत्ता को एकमत से स्वीकार किया है। मैं भी ईश्वर की तरह किसी में भेद नहीं करता मेरे लिए क्या हिंदू क्या मुसलमान क्या बौद्ध,जैन,पारसी,ईसाई सभी पर समान दृष्टि रखता हूँ।यहाँ तक कि मनुष्य के द्वारा बनाए गए संविधान से भी ऊपर उठकर कार्य करता हूँ। मेरी दृष्टि में सामान्य, एसटी ,एससी, ओबीसी, दिव्यांग,महिला,विधवा,परित्यक्त बच्चे ,बूढ़े सभी एक जैसे हैं।किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं। संपूर्ण विश्व की मानव जाति मेरे लिए समान है ।जिस मनुष्य ने मेरी सत्ता और शक्ति को स्वीकार कर लिया है, मैं उनसे दूर ही रहता हूँ किंतु जो मनुष्य अपनी शक्ति और सत्ता के मद में होकर मेरी शक्ति और सत्ता को चुनौती देता है मैं उसे कदापि नहीं छोड़ता। उदाहरण के लिए मैंने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को भी अपनी शक्ति और सत्ता का एहसास करा दिया है। आगे कुछ और कहना चाहता हूँ।
सार्स,इवोला H1,N1,स्वाइन्फ्ल्यू मेरे भाई – बंधु थे ।
किंतु हे मनुज!
तूने उनको साधारण रूप में लिया और अपनी अवांछित गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं किया तूने प्रकृति के संतुलन को असंतुलित किया अतः इसका परिणाम भी तुझे भुगतना पड़ेगा।अंत में मैं अपनी कमजोरी भी बता देता हूँ ,क्योंकि बिना भेद के तो रावण भी नहीं मरा था,तो मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि-
हे मनुज!
तू हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ जा और सरकार के निर्देशों का ईमानदारी से पालन कर मैं भाग जाऊँगा।
जो छुप गया ,वो बच गया।
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नव-विवाहिता का कोरोना को पत्र
हे अतिथि कोरोना !
तुम कब जाओगे?
कोरोना मैंने तुमको मेहमान नहीं कहा क्योंकि हमारी परंपरा में मेहमान को बुलाया जाता है, एक निश्चित अवसर पर निश्चित समय के लिए।मैंने तुमको अतिथि कहा क्योंकि तुमको किसी ने बुलाया नहीं ना ही तुम्हारे आने की निश्चित तिथि और ना ही तुम्हारे जाने की कोई निश्चित तिथि इसलिए तुम अतिथि हो।
हे कोरोना!
मैं अपने ह्रदय की वेदना किससे कहूँ,कौन समझ सकता है।मैं तुमको ही कह सकती हूँ।
मेरे विवाह के बाद यह मेरी पहली नवरात्रा पूजा थी मन में बड़ा उत्साह, उमंग, उल्लास था कि इन नवरात्रों में माता-रानी की पूजा करूँगी,सुहाग की लाल चुनरिया ओढूँगी, व्रत रखूंगी ,रात्रि जागरण करूँगी,कन्याओं को भोजन कराकर उनका आशीर्वाद लूँगी किंतु तुमने मेरी नव-अभिलाषाओं को पूरे नहीं होने दिया।
हे कोरोना!
आज मुझे गणगौर की पूजा भी करनी है जो एक सुहागन स्त्री के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है लेकिन मैं तुम्हारी उपस्थिति में सज-धज भी नहीं सकती।सजने के लिए प्रसाधनों की आवश्यकता रहेगी,तुम जानते हो उस कमी को पूरा नहीं किया जा सकता।बहुत दिनों से मन में बड़ा उत्साह था कि यह गणगौर का त्योहार अपनी सभी सहेलियों के साथ मनाऊंगी किंतु तुमने मेरी यह अभिलाषा भी पूरी नहीं होने दी।
हे कोरोना!
तुम जानते होंगे कि गणगौर अर्थात बिना गण के गौर का कोई अस्तित्व नहीं ।मेरा गण अर्थात मेरा (प्रियतम) भी मुझसे दूर है, वह चाहकर भी मेरे पास नहीं आ सकते और ना ही मैं उनके पास जा सकती।
प्रियतम की अनुपस्थिति में गणगौर का त्योहार मेरे हृदय में शूल की भाँति चुभ रहा है।
हे कोरोना!
तुम कितने निर्मोही हो तुम अपनी गौर से प्रेम नहीं करते।हाँ मुझे लगता है तुम अपनी गौर से प्रेम नहीं करते अगर तुम अपनी गौर से प्रेम करते तो तुम भी अपनी प्रियतमा को लाल चुनरी ओढ़े़े देख सकते थे।
हे कोरोना !
मेरे जैसी न जाने कितनी नव-यौवना आपकी उपस्थिति के कारण अपने प्रियतम से दूर होंगी। वो तुमको कोस रही होंगी, लेकिन उनके कोसने का तुम पर कोई असर नहीं पड़ रहा।
हे करोना!
तुम निर्मोही के साथ साथ लज्जाहीन भी हो।
तुमको लज्जा नहीं आती अगर आती तो तुम मेरी जैसी नव-योवनाओं के मार्ग में अवरोधक नहीं बनते।अंत में मैं तुमको यही कहूँगी कि इन नवरात्रों के अंतिम दिन हम सभी नव-योवनाएँ हवन करेंगी और उस हवन में तुम जलकर स्वाहा हो जाओ।
लेखक-
डॉ.कुलराज व्यास
असिस्टेंट प्रोफेसर आई.ए.एस.ई.मानित विश्वविद्यालय,सरदारशहर
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हिंदी को बढ़ावा हेतु पाँच दोहे
1.भाषा सभी समान हैं,भाषा बड़ी न कोय।
हिंदी भाषा है बड़ी, जाते बड़ी न कोय।।
2.भाषा की अपनी व्यथा, जाहे समझे कौन।
अंग्रेजी बोलें सभी,हिंदी होती मौन।।
3.हिंदी हिंदी ही नहीं,हिंदी है अभिमान।
लिखें जिसमें संत सूर,पंत और रसखान।।
4.भाषा के पंडित सभी,सुनो लगाकर ध्यान।
हिंदी में गौरव बढ़े,और बढ़े सम्मान।।
5.हिंदी भाषा राष्ट्र की , भारत की पहचान।
हिंदी में बोलो पढ़ो,होगा देश महान।।
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“अनुशासनात्मक स्वतंत्रता में शिक्षा”
आज-कल विद्यालयों में भय-युक्त वातावरण प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे बालकों में भय ,संकोच और तनाव उत्पन्न हो रहा है, जिससे बालक कुछ सीखने के बजाय सब कुछ आता हुआ भी भूल जाता है। अतः विद्यालयों और शिक्षकों को ऐसा वातावरण प्रस्तुत करना चाहिए जिससे बालक स्वतंत्र रूप से भय और संकोच से मुक्त होकर शिक्षा ग्रहण कर सके ।आज-कल विद्यालयों में अनुशासन स्थापित करने के लिए दंड का सहारा लिया जाता है ,जो प्राकृतिक एवं वैधानिक रूप से वर्जित है ।किसी भी शिक्षाविद ने विद्यालयों में अनुशासन स्थापित करने के लिए दंड की वकालत नहीं की है ।लेकिन आए दिन पत्र-पत्रिकाओं में “डंडे की पाठशाला” नामक शीर्षक से खबर छपती है, जिसमें नन्हें -नन्हें बालकों पर डंडे अर्थात दंड द्वारा अनुशासन स्थापित किया जाता है ।जहाँ तक विद्यालयों में अनुशासन स्थापित करने की बात है ,तो दंड के आधार पर अनुशासन कुछ समय तक ही रखा जा सकता है ,जैसे- पानी में ऊष्मा लगी रहती है, तब तक पानी गर्म रहता है और जैसे ही पानी से ऊष्मा हटी तो पानी अपनी मूल अवस्था में आ जाता है ।अनुशासन का आधार दंड ना होकर प्रेम और स्नेह होना चाहिए क्योंकि प्रेम और स्नेह पर आधारित अनुशासन स्थाई रहता है।
यहाँ हमारा आशय अनुशासनात्मक स्वतंत्रता से है, ना कि स्वच्छंदता से क्योंकि कभी-कभी स्वतंत्रता और स्वच्छंदता का अर्थ सामान समझ लिया जाता है ,किंतु ऐसा नहीं है। प्रायः स्वतंत्र को लोग स्वच्छंद समझने की भूल कर बैठते हैं, परंतु इनमें जमीन -आसमान का अंतर है।
“स्व “दोनों में प्रबल है,आजादी दोनों में है ,लेकिन “स्वतंत्र” में एक “तंत्र” विद्यमान है जो स्वच्छंद नहीं होने देता ।
स्वतंत्र “तंत्र ” अर्थात नियम, प्रबंध युक्त व्यवस्था ।अंग्रेजी में कहें तो सिस्टम ।स्पष्ट है ,कि स्वतंत्रता में स्वेच्छाचारिता नहीं है, मनमानापन नहीं है ।स्वतंत्रता का सुख दूसरों का ख्याल करके चलने में ,जबकि स्वच्छंदता अनुशासन की बाड़ तोड़कर चलती है ।स्वच्छंदता नियंत्रणहीन व्यवहार है, अराजकता का कारण बन सकती है ।
अतः बच्चों को अनुशासनात्मक स्वतंत्रता देने से बालकों की सोचने -विचारने की एवं निर्णय लेने की क्षमता का नैसर्गिक रूप से विकास हो सकेगा और स्थाई अनुशासन भी स्थापित हो सकेगा।
धन्यवाद।
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” कृष्ण यामिनी”
११ सितंबर २०१९ |
आज कृष्ण यामिनी,बन गई चाँद की भामिनी ।
चाँद के संसर्ग से, आलोकित हो बन गई सौदामिनी ।।
चाँद कृष्ण यामिनी के घन केशों में जैसे छुप गया।
मानो वह चाँद मानव के योवन में जैसे खो गया ।।
जब चाँद और कृष्ण यामिनी के मध्य प्रभाकर प्रगट हो गया। देखते ही देखते चाँद कृष्ण यामिनी से दूर हो गया।।
कुछ समय के लिए ही सही थी कृष्ण यामिनी चाँद की सहगामिनी ।
आज दूर होते हुए चाँद ने कह दिया तू बनी रहना मेरी पथ-गामिनी ।।
हे कृष्ण यामिनी !
प्रभाकर और चाँद के आलोक से दुनियाँ आलोकित है।
पर तुझे तय करना है कि तेरा साथ किसके साथ सुभाषित है।। ———————–११ सितंबर २०१९ |
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आलेख – शीर्षक- “राजकीय विद्यालयों में नामांकन वृद्धि”
कुछ दिन पूर्व स्थानीय अखबार में खबर छपी के सरकारी विद्यालयों में नामांकन बढ़ाने के लिए शिक्षा विभाग की ओर से नए शिक्षा सत्र में घर-घर जाकर बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए अभिभावकों को प्रेरित किया जाएगा। गाँवों में भी प्रत्येक घर तक पहुँचकर शिक्षक व जनप्रतिनिधि अभिभावकों से समझाइस करेंगे ।शिक्षा विभाग की यह सराहनीय पहल है ,अच्छी योजना है ।लेकिन इस पुनीत कार्य में सहयोग के लिए शिक्षक और जनप्रतिनिधि ही क्यों ?
क्यों न इस कार्य में नौकरशाहों को भी शामिल किया जाए। जनप्रतिनिधि तो विभाग के मंत्री जी भी हैं ,क्या वह भी कहीं इस नामांकन बढ़ाने के अभियान में रैलियाँ निकालेंगे?
क्या गाँव-गाँव और घर-घर जाकर अभिभावकों को समझाएंगे?
अरे! जनप्रतिनिधि तो सांसद और विधायक भी हैं, क्या हम उन से इस पुनीत कार्य की अपेक्षा रख सकते हैं। विभाग के इस पावन कार्य को अमलीजामा पहनाने के लिए शेष रहता है, तो एक शिक्षक।
शिक्षा विभाग की त्रिस्तरीय व्यवस्था में प्रथम स्तर विभाग का मंत्री और अंतिम स्तर विभाग का शिक्षक। इन दोनों स्तरों पर कार्य करने वाले व्यक्ति सीधे जनता से जुड़े तो अवश्य रहते हैं ,लेकिन विभाग के मध्यम स्तर पर कार्य कर रहे व्यक्तियों (विभाग के सचिवों ) से योग्यता में तो कम ही होते हैं ।क्योंकि मंत्रीजी तो कभी-कभी निरक्षर भी बन जाते हैं और शिक्षक बीएसटीसी या बीएड उपाधि धारक ही होते हैं ।जबकि विभाग का सचिव आर.ए.एस.या आईएएस अफसर होता है ।मेरा मानना है ,कि जनप्रतिनिधियों और शिक्षकों से ज्यादा अच्छा समझाने का तरीका इस मध्यम वर्ग का हो सकता है , तो क्यों ना इन अफसरों को ही गाँव-गाँव और घर-घर अभिभावकों को समझाने के लिए भेजा जाए।
अरे !ज्यादा नहीं तो वर्ष में एक बार तो राजस्थान की मई-जून की गर्मी का आनंद लेने के लिए अवश्य ही महाशयों को भ्रमण कर लेना चाहिए ।लेकिन विभाग इन सचिवों का कार्य केवल और केवल योजना बनाना , नियम बनाना और आदेश निकाल ही रहता है ।
विभाग ने आदेश तो जारी कर दिया कि विद्यालयों के शिक्षकों को कम से कम पाँच बच्चों को प्रवेश दिलाना होगा ,लेकिन आदेश में स्पष्ट नहीं किया गया कि नामांकन होने के बाद अगर बालक विद्यालय नहीं जाता है तो इसकी प्रत्याभूति कौन लेगा? शिक्षक या विभाग का उच्च अथवा मध्यम स्तर? क्योंकि हो सकता है, कि शिक्षक पर विभाग का दबाव और दबाव के चलते नामांकन में वृद्धि लिकिन दबाव में किए गए कार्य के कभी भी सकारात्मक परिणाम नहीं मिलते। खैर जो भी हो इसमें कोई संदेह नहीं है ,कि विभाग की पहल एक सराहनीय कदम है। हमारा मानना है ,कि नामांकन के लिए शिक्षकों से कोई बाध्यता नहीं होती और आम नागरिकों से यह अपील की जाती,कि जितने हो सके उतने नामांकन कराइए ।
जो व्यक्ति सबसे अधिक नामांकन कराता उसे राष्ट्रीय उत्सवों पर कुछ नगद राशि के साथ प्रशस्ति- पत्र देकर विभाग द्वारा सम्मानित किया जाता तो निश्चित तौर पर परिणाम बेहतर ही होते ।
और ज्यादा क्या कहूँ हमें भाजपा से सीख लेना चाहिए कि भाजपा का कार्यकर्ता सबसे अधिक सदस्य , दल से जोड़ता है तो उसको माननीय प्रधानमंत्री जी के साथ रात्रि-भोज में आमंत्रित किया जाएगा। तो क्यों ना विभाग को भी ऐसे लुभावने वादों से नामांकन में वृद्धि करनी चाहिए। हम बात कर रहे हैं सरकारी विद्यालय में गिरते नामांकन की। वास्तव में यह चिंतन और चिंता का विषय है,कि राजकीय विद्यालयों में इतनी सुविधाएं होने के उपरांत भी विद्यालयों में नामांकन स्तर गिरता जा रहा है। इसकी प्रथम उपयुक्त बजय प्रतीत होती है ,कि अभिभावकों का मानसिक दृष्टिकोण। हमारे समाज में यह सोच बलवती हो गई है , कि अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कार केवल पब्लिक और कॉन्वेंट विद्यालयो में ही है ।लेकिन यह अभिभावकों की मिथ्या सोच है।इस मिथ्या सोच को एक अनुभव से स्पष्ट कर रहा हूँ ,कि मैंने कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले एक छात्र से पूछा कि बेटा कॉन्वेंट का क्या मतलब है ,तो वह चुप हो गया फिर मैंने पूछा कि एलकेजी और यूकेजी का क्या मतलब होता है तो छात्र उत्तर देने की वजाय मेरा मुँह ताकता रह गया । मैंने मन में सोचा वाह री कॉन्वेंट व्यवस्था और माता-पिता से जब शुल्क के बारे में जानकारी चाही तो आप ताज्जुव करेंगे उस बच्चे की सालाना शुल्क एक बीएड छात्र के समतुल्य थी।इन पब्लिक और कॉन्वेंट विद्यालयों में प्रवेश दिलाकर अभिभावक अपने -आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हमारा बच्चा फलाँ स्कूल में जा रहा है। जब आप राजकीय सेवा में चयनित होकर गौरवान्वित महसूस करते हैं तो अपने लाड़लों को राजकीय विद्यालय भेजना पसंद क्यों नहीं करते ? कक्षा बारहवीं के बाद आपका लाडला मेडिकल या इंजीनियरिंग की परीक्षा देता है और उसे राजकीय महाविद्यालय आवंटित होता है ,तो आपकी खुशी दुगनी हो जाती है ,तो फिर आप अपने लाड़लों को राजकीय विद्यालय में प्रवेश क्यों नहीं दिलाते ?अगर बात करें गुणवत्ता युक्त शिक्षा की तो राजकीय विद्यालयों में ही गुणवत्ता युक्त शिक्षा दी जाती है इसका मुख्य कारण है निस्पंदन का सिद्धांत अर्थात छननी। राजकीय विद्यालयों में जो शिक्षक कार्यरत हैं उनका चयन एक प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से होता है, प्रतियोगिता का अर्थ है, श्रेष्ठ का चयन। तो बात स्पष्ट है, कि राजकीय विद्यालयों में श्रेष्ट अध्यापकों द्वारा अध्यापन कार्य कराया जाता है।
अगर आप चाहते हैं ,कि आपका लाडला गगनचुंबी इमारतों बाले विद्यालय में अध्ययन करें ,एक अच्छी वैन( विद्यालय वाहन )उसे लेने और छोड़ने आए, वातानुकूलित कक्ष में बैठे तो विलासिता युक्त वातावरण तो आप अपने घर पर भी उपलब्ध करा सकते हैं ।मैं सुविधाओं का पक्षधर हूँ ना कि विलासिता का। किसी ने ठीक ही कहा है ,कि जीवन अभाव में पलता है। बालक को सुविधा उपलब्ध कराओ लिकिन इतनी नहीं कि वह आलसी बन जाए ।अगर आपका लाडला एक किलोमीटर पैदल चलकर विद्यालय पहुँचता है तो क्या हर्ज है।जब बीमारियाँ घेर लेतीं हैं तो चिकित्सक उपचार के रूप में सुबह भ्रमण की सलाह देता है , तो यही मान लें कि हम एक तीर से दो शिकार कर रहे हैं।और फिर शास्त्री जी भी तो नदी पार करके विद्यालय जाया करते थे ।अगर हम बात करें पौराणिक काल की तो कृष्ण -सुदामा भी तो संदीपन ऋषि के आश्रम में अध्ययन करने गए वहाँ भिक्षा माँग कर पेट भरना,जमीन पर सोना,लकड़ी लाना गुरु की सेवा करना आदि आदि । राम और लक्ष्मण की बात करें तो विश्वामित्र ऋषि के आश्रम में क्या आज की तरह ही वातानुकूलित कक्ष थे?एक चक्रवर्ती राजा के सुकुमार बालक उन्होंने कैसे शिक्षा प्राप्त की होगी। क्या आप सोच सकतें हैं , हाँ सोच लेंगे तो क्या आप अपने लाड़लों को ऐसे बातावरण में भेज देंगे ?और मुझे नहीं लगता कि संदीपन के शिष्य कृष्ण से बड़ा कोई प्रोफेसर हुआ हो, क्या ज्ञान दिया अर्जुन को कि दुनियाँ युगों- युगों तक याद करेगी। विश्वामित्र से प्राप्त शिक्षा से ही राम-लक्ष्मण ने इस धरा से राक्षसों का संहार किया। पूर्व मध्यकाल में शिक्षा के प्रमुख केंद्र रहे नालंदा,जगद्दल,वल्लभी, तक्षशिला ,विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालयों में क्या अत्याधुनिक सुविधाएं थी? लेकिन उन विश्वविद्यालयों से निकले छात्रों ने दुनियाँ भर में नाम कमाया । टेगोर साहब का शान्ति निकेतन मालवीय जी का वनारस हिन्दू विश्वविद्यालय किसी भी तरह की सुविधाओं से संपन्न नहीं थे , लिकिन प्रकृति के सुरम्य बातावरण में जो छात्र अध्ययन करते थे उस शिक्षण व्यवस्था की तुलना नहीं की जा सकती है। राजकीय विद्यालयों में तो सभी प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध हैं, पुस्तक ,पोशाक ,भोजन आदि की निःशुल्क व्यवस्था ,कमजोर वर्ग के विद्यार्थियों हेतु छात्रवृत्ति की व्यवस्था ,बालिकाओं के लिए साइकिल की व्यवस्था। अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि श्रेष्ट उपज के लिए अपने लाडलों को राजकीय विद्यालयों में प्रवेश दिलाएं और अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर अपने लाडलों का गौरव बढ़ाएं।
धन्यवाद।
लेखक-
डॉ .कुलराज व्यास
प्राचार्य जगदीश बीएड महाविद्यालय,आँगई धौलपुर।
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Very nice poem good luck Dr. Kulraj vyas.
सादर धन्यवाद जी।
Aap ki is dafalta se bahut khushi huei h or aap ye kabita annt unchaei chhiye yah hamari kamna h………………….
सादर धन्यवाद जी।
Really great and amazing 👏🙏🌿👏
सादर धन्यवाद जी।
Bahut hi achhi achhi poem rachi h Guru Dev, bahut jyada khushi hui h ye sab Dekh ke,proud of you 🙏🙏🙏👏👏👏
धन्यवाद जी।
Good work & good knowledge
सादर धन्यवाद।
धन्यवाद जी।
सादर धन्यवाद।
Very impressive sir ji…
All the best for next one
धन्यवाद अमित।
Waoooo bhai superb
Congratulations bhai ji
धन्यवाद ।
VERY NICE
धन्यवाद।
Your lines are the mirror of changes in our culture.
Thanks to aware us by your kind words. 👌
Very nice Sr ji
धन्यवाद।
धन्यवाद।
हंसराज।
बहुत ही प्रशंसनीय कार्य
सारगर्भित रचनाओं के लिए आपका बहुत बहुत आभार
आगे बढ़ें शिखर तक जाएं यही शुभकामनाएं
Very nice poem sir ji
सादर प्रणाम गुरूजी
आपकी सभी रचनाऐं प्रंशसनीय हैं।
कुछ पंक्तिओ मे आपने जिस ढंग से शब्दों का उपयोग किया है उसकी कोई तुलना नहीं। बस हदय को छू गई। शायद उसमें सच्चाई शामिल है।
आपने जिस ढंग से श्रीकृष्ण को सबसे बड़ा प्रोफेसर बताया है, और आपने बताया कि वास्तविकता मे तो जीवन अभाव मे पलता है।
आज के समय की वास्तविकता को झेंपते हुए आपने कटाक्ष किया कि कुछ मुँह बोले भाई ने, बहना को, महबूबा करके पाया है।
और अन्तिम पंक्ति जो मुझे छू गई वो है-
रंग, रूप, वेश-भूषा देश में अनेक हैं।
फिर भी हिंदुस्तानियों का दिल बड़ा नेक है
इसी भाव से ही तो देश की एकता और अखण्डता बरकरार है।
-आपका नूतन शिष्य
धन्यवाद ऋषभ।
Prnam sir ji.. Aap great ho.. Very very very great..
धन्यवाद कुलदीप।
सादर प्रणाम गुरु देव 🙏 आपका अपना शिष्य प्रशांत। आपने मुझे कई बार बड़ी समस्या से बचाया। जगदीश महाविद्यालय मे आपका व्यकतित्व बहुत अच्छा रहा।आप हमें यु ही दिशा निर्देश देते रहना। जिससे हम कही गलत राह पर न चले जाये। बल्कि आपकी नयी नयी कविताएं✍️✍️ हमे सदा उच्च प्रेरणाएँ देती रहे।💐💐🙏🙏
बहुत ही अच्छा लेखन आपका हमें तो ज्ञात ही नहीं था वास्तव में शराब लेखनी के धनी और यही प्रार्थना करती हूं कि आपका लेखन आगे बढ़े और आप कवियों और लेखकों की श्रेणी में अपना और अपने देश का नाम रोशन करें साभार
महोदया!
सादर धन्यवाद।
आपका सहयोग एवम् मार्गदर्शन सदैव मिलता रहे।