कविता अपने भावों को प्रकट कर,
कम शब्दों
में सारी बातें कहने का एक उत्तम माध्यम है | कविता में लय प्रदान करने के लिए छंद का प्रयोग किया जाता है | अगर छंद को परिभाषित करें तो कह सकते हैं कि वर्णो
या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आहाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते है। दोस्तों जिन रचनाओं में मात्राएँ या वर्ण निश्चित
संख्या में होते हैं उन्हें छंद कहते हैं | पद्य रचना बिना छंद ज्ञान के
संभव नहीं और वेद के विभिन्न अंगो में छंद
को एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है ,
छन्द की
प्रथम चर्चा ऋग्वेद में हुई है। छंद शब्द ‘छद्’ धातु से बना है जिसका अर्थ है ‘आह्लादित करना’, ‘खुश करना’ और ‘छंद का दूसरा नाम पिंगल भी है, कारण यह है कि छंद-शास्त्र के आदि प्रणेता पिंगल नाम
के ऋषि थे।
छंद के अंग –
(1)चरण /पद /पाद
(2) वर्ण और मात्रा
(3) संख्या क्रम और गण
(4)लघु और गुरु
(5) गति
(6) यति /विराम
(7) तुक
(1)चरण /पद /पाद
एक छंद रचना की एक पंक्ति को पद कहते हैं | कवि बीरेंद्र कुमार यादव द्वारा
लिखे इस दोहे को पढ़ें –
जीने का आधार हो, योग व अल्पाहार |
मुख पर आभा तब दिखे, बिन कोई श्रृंगार ||
इस दोहे में – जीने का आधार हो,
योग व
अल्पाहार – दोहा छंद का पहला पद है और मुख पर आभा तब दिखे, बिन कोई श्रृंगार – इस दोहे छंद का दूसरा पद है |
और यहाँ पर हर एक पद दो चरणों में विभाजित है |
पहले पद में:
जीने का आधार हो – पहला चरण
योग व अल्पाहार – दूसरा चरण
दूसरे पद में:
मुख पर आभा तब दिखे – पहला चरण
बिन कोई श्रृंगार – दूसरा चरण
पहले और तीसरे चरण को विषम चरण तथा दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहते हैं | दोहा और सोरठा छंदों में चरण चार होते हैं जो दो
पंक्तियों (दो पदों) में लिखे जाते हैं | प्रायः चार चरणों के छंद होते हैं | कुछ छंद छः-छः पंक्तियों में भी
लिखे जाते हैं जैसे कि कुण्डलियाँ – यह दो छंदों के योग से बनता है (दोहा और रोला
) |
(2) वर्ण और मात्रा
एक स्वर वाली ध्वनि को वर्ण कहते हैं, चाहे वह स्वर हस्व हो या दीर्घ।
जिस ध्वनि में स्वर नहीं हो (जैसे हलन्त शब्द राजन् का ‘न्’,
संयुक्ताक्षर
का पहला अक्षर- कृष्ण का ‘ष्’) उसे वर्ण नहीं माना जाता।
वर्ण को ही अक्षर कहते हैं। ‘वर्णिक छंद’ में चाहे हस्व वर्ण हो या दीर्घ- वह एक ही वर्ण माना
जाता है; जैसे- राम, रामा,
रम, रमा इन चारों शब्दों में दो-दो ही वर्ण हैं।
वर्ण 2 प्रकार के होते हैं-
(i) हस्व स्वर वाले वर्ण (हस्व
वर्ण): अ, इ, उ,
ऋ; क,
कि, कु,
कृ
(ii) दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ
वर्ण) : आ, ई, ऊ,
ए, ऐ,
ओ, औ;
का, की,
कू, के,
कै, को,
कौ
मात्रा
किसी वर्ण या ध्वनि के उच्चारण-काल को मात्रा कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें
तो किसी वर्ण के उच्चारण में जो अवधि लगती
है, उसे मात्रा कहते हैं। हस्व वर्ण
(अ, इ, उ, ऋ) के उच्चारण में जो समय लगता
है उसे एक मात्रा तथा दीर्घ वर्ण (आ, ई,
ऊ, ए,
ऐ, ओ,
औ) के उच्चारण
में जो समय लगता है उसे दो मात्रा माना जाता है।
वर्ण और मात्रा की गणना
वर्ण की गणना
हस्व स्वर वाले वर्ण (हस्व वर्ण)- एकवर्णिक- अ, इ, उ, ऋ; क, कि, कु, कृ
दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण)- एकवर्णिक- आ, ई,
ऊ, ए,
ऐ, ओ,
औ; का,
की, कू,
के, कै,
को, कौ
मात्रा की गणना
वह अक्षर जो एक मात्रा वाला होता है उसे छंद भाषा में लघु कहते हैं | वह अक्षर जो दो मात्रा
वाला होता है उसे गुरु कहते हैं | लघु के लिए चिह्न “I” का प्रयोग करते हैं जबकि गुरु के लिए चिह्न “s” का प्रयोग करते हैं |
स्वर वर्णों पर मात्रा का प्रयोग किया जाता है, जबकि व्यंजन वर्णों पर मात्रा का प्रयोग नहीं किया जाता है | अ , इ ,
उ इत्यादि में लघु यानि १ मात्रा गिनी जाती है जबकि आ, ई,
ए, ऐ,
ओ, औ इत्यादि में गुरु यानि २ मात्रा गिनी जाती है |
दोस्तों उदाहरण के लिए “महल”
शब्द में कुल मात्राओं की संख्या ३ है | म के लिए १, ह के लिए १, और ल के लिए १ कुल (१+१+१ =३) | शब्द “सीता” में कुल मात्राओं की संख्या ४
है | सी में ी के लिए २ मात्राएँ और
ता में आ के लिए २ मात्राएँ कुल (२+२ =४) मात्राएँ |
चलो दोस्तों दोहा छंद का एक उदाहरण लेते हैं |
नित निंदा चुगली करे,
मन में भरे खटास|
घड़ा पाप का वो भरे,
हर पल रहे उदास||
पहला चरण: नित निंदा चुगली करे,
नित (१+१) + निंदा (१+१+२) + चुगली (१+१+२) + करे (१+२) = १३
यहाँ निंदा को आप बोल कर देखें तो निदा और निंदा में एक मात्रा का अंतर साफ
नज़र आएगा | यहाँ अंत में “करे” आया यानि की एक लघु और एक
गुरु का प्रयोग किया |
दूसरा चरण: मन में भरे खटास,
मन (१+१) + में (२) + भरे (१+२) + खटास (१+२+१) = ११
यहाँ अंत में “टास” आया यानि की एक गुरु और एक लघु का प्रयोग किया|
तीसरा चरण: घड़ा पाप का वो भरे,
घड़ा (१+२) + पाप (२+१) + का (२) + वो (२) + भरे (१+२) = १३
यहाँ अंत में “भरे” आया यानि की एक लघु और एक गुरु का प्रयोग किया |
चौथा चरण: हर पल रहे उदास,
हर (१+१) + पल (१+१) + रहे (१+२) + उदास (१+२+१) = ११
यहाँ अंत में “दास” आया यानि की एक गुरु और एक लघु का प्रयोग किया|
(3) संख्या क्रम और गण
वर्णो और मात्राओं की सामान्य गणना को संख्या कहते हैं, किन्तु कहाँ लघुवर्ण हों और कहाँ गुरुवर्ण हों- इसके
नियोजन को क्रम कहते है। मात्राओं और
वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिये तीन वर्णों के समूह को एक गण मान लिया
जाता है। गणों की संख्या ८ है – यगण (।ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), तगण (ऽऽ।), रगण (ऽ।ऽ), जगण (।ऽ।), भगण (ऽ।।), नगण (।।।) और सगण (।।ऽ)।
गणों को आसानी से याद करने के लिए एक सूत्र बना लिया गया है- यमाताराजभानसलगा।
सूत्र के पहले आठ वर्णों में आठ गणों के नाम हैं। अन्तिम दो वर्ण ‘ल’
और ‘ग’
लघु और
गुरू मात्राओं के सूचक हैं। जिस गण की मात्राओं का स्वरूप जानना हो उसके आगे के दो
अक्षरों को इस सूत्र से ले लें जैसे ‘मगण’ का स्वरूप जानने के लिए ‘मा’
तथा उसके
आगे के दो अक्षर- ‘ता रा’ = मातारा (ऽऽऽ)।
‘गण’ का विचार केवल वर्ण वृत्त में होता है मात्रिक छन्द
इस बंधन से मुक्त होते हैं।
। ऽ ऽ ऽ । ऽ । । । ऽ
य मा ता रा ज भा न स ल गा
(4) लघु और गुरु
वह अक्षर जो एक मात्रा वाला होता है उसे छंद भाषा में लघु कहते हैं | वह अक्षर जो दो मात्रा
वाला होता है उसे गुरु कहते हैं | लघु के लिए चिह्न “I” का प्रयोग करते हैं जबकि गुरु के लिए चिह्न “ऽ” का प्रयोग करते हैं |
स्वर वर्णों पर मात्रा का प्रयोग किया जाता है, जबकि व्यंजन वर्णों पर मात्रा का प्रयोग नहीं किया जाता है | अ , इ ,
उ इत्यादि में लघु यानि १ मात्रा गिनी जाती है जबकि आ, ई,
ए, ऐ,
ओ, औ इत्यादि में गुरु यानि २ मात्रा गिनी जाती है |
दोस्तों उदाहरण के लिए
“महल” शब्द में कुल मात्राओं की संख्या ३ है | म के लिए १, ह के लिए १, और ल के लिए १ कुल
(१+१+१ =३) | शब्द “सीता”
में कुल मात्राओं की संख्या ४ है |
सी में ी
के लिए २ मात्राएँ और ता में आ के लिए २ मात्राएँ कुल (२+२ =४) मात्राएँ |
(5) गति
पद्य के पाठ में जो बहाव होता है उसे गति कहते हैं।
(6) यति /विराम
पद्य पाठ करते समय गति को तोड़कर जो विश्राम दिया जाता है उसे यति कहते हैं।
जीने का आधार हो, योग व अल्पाहार |
मुख पर आभा तब दिखे, बिन कोई श्रृंगार ||
इस दोहे में पहले पद में हो के बाद वाचन का प्रवाह रुकता है और दूसरे पद में
दिखे के बाद वाचन प्रवाह रुकता है,
इसी वाचन
प्रवाह की रुकावट को यति कहते हैं |
(7) तुक
समान उच्चारण वाले शब्दों ( जैसे भार, आभार, श्रृंगार इत्यादि ) के प्रयोग को तुक कहा जाता है। पद्य प्रायः
तुकान्त होते हैं।
छन्द के प्रकार
छंद मुख्तयः दो प्रकार के होते हैं –
(1) वर्णिक छन्द
(२) मात्रिक छन्द
(1) वर्णिक छन्द –
जिन छंदों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है उन्हें मात्रिक छंद कहा
जाता है। जैसे – अहीर, तोमर, मानव;
अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई; पीयूषवर्ष, सुमेरु, राधिका, रोला, दिक्पाल, रूपमाला, गीतिका, सरसी,
सार, हरिगीतिका, तांटक, वीर या आल्हा |
(२) मात्रिक छन्द –
वर्णों की गणना पर आधारित छंद वर्णिक छंद कहलाते हैं। जैसे – प्रमाणिका; स्वागता, भुजंगी, शालिनी, इन्द्रवज्रा, दोधक; वंशस्थ, भुजंगप्रयाग, द्रुतविलम्बित, तोटक; वसंततिलका; मालिनी; पंचचामर, चंचला; मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी, शार्दूल विक्रीडित, स्त्रग्धरा, सवैया, घनाक्षरी, रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी, कवित्त / मनहरण |
दो और प्रकार के छंदों के बारे में जानना आवश्यक है –
(३) वर्णिक वृत्त –
सम छंद को वृत कहते हैं। इसमें चारों चरण समान होते हैं और प्रत्येक चरण में
आने वाले लघु गुरु मात्राओं का क्रम निश्चित रहता है। जैसे – द्रुतविलंबित, मालिनी |
(४) मुक्त छंद –
भक्तिकाल तक मुक्त छंद का अस्तित्व नहीं था, यह आधुनिक युग की देन है। इसके प्रणेता सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ माने जाते हैं। मुक्त छंद नियमबद्ध नहीं होते, केवल स्वछंद गति और भावपूर्ण यति ही मुक्त छंद की विशेषता हैं।